प्रकृति के प्रति पीढ़ीगत स्मृति लोप ?

5 जून
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विश्व पर्यावरण दिवस
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= राकेश 'सोहम' =

हम कई दिनों से एल ० टी० सी० लेकर बाहर कहीं घूम आने की योजना बना रहे हैं । कोई ऐसी जगह जहां कुदरत का भरपूर नज़ारा हो । लेकी हर बार यह विचार मज़बूत नहीं हो पाता । प्रकृति से रूबरू हो पाने की योजना असफल हो जाती है !

बच्चों और श्रीमती जी क कहना है - ऐसी जगह क्या घूमना । किसी महानगर को घूमने चला जाए । प्रकृति, हरियाली, पंछी और जानवर आदि तो हम टी.वी० पर देख लेते हैं ।

इस तरह की सोच ना केवल मेरे परिवार में बल्कि लगभग हर युवा में जनम चुकी है ! वे आभासी कुदरत को ही असली कुदरत मान रहे हैं । दिन प्रतिदिन असली प्रकृति का महत्त्व घटता नज़र आ रहा है !! आम तौर पर शहरी माहौल में रहने वाले बच्चे प्रकृति से कटते जा रहे हैं । वे ना पंछियों का कलरव सुन पाते हैं ना ही कुत्ते बिल्ली के अलावा कोई और पशु या जानवर देख पाते हैं ।
एक वैज्ञानिक शोध बताता है की प्रकृति से दूरी की वजह से शहरों में तनाव बढ़ रहा है । जो सुकून वास्तविक प्रकृति से मिलता है वह आभासी प्रकृति से नहीं मिलता । चाहे वह प्रकृति हम प्लाज्मा टी.वी। में ही क्यों ना देखें ।

आज का कड़वा सच यह है कि वास्तविक कुदरत का अहसास समाप्त हो रहा है । इसे वैज्ञानिक भाषा में एन्वाय्रंमेंटल जन्रेश्नल अम्नीश [ प्रकृति के प्रति पीढ़ीगत स्मृति लोप ] कहा जाता है ।

कहीं हम इसके शिकार तो नहीं हो रहे हैं ? खैर ! मैंने तो प्रकृति से जुड़ने के लिए आरक्षण करा लिया है ।

Comments

  1. आदि शंकराचार्य ने देश के चार कोनों में चार धाम बना कर पूरे देश भ्रमण के लिए प्रोत्साहित किया है.इन धामों के दर्शन के बहाने भारत के विविध प्राकृतिक दृश्यों और वातावरण का आनंद भी मिलता है.

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  2. मनुष्य तो सदा से ही प्रकृति से दूर हटता आ रहा है । और उसी के साथ प्रकृति के ऊपर विजयी होने का अहंकार भी उसे है । सवाल किया जा सकता है तो यही कि वह कितना दूर तक जाएगा और कितना दूर जाना सुरक्षित होगा । डर यही है कि वह कहीं बहुत दूर न चला जाय जहां विनाश उसकी प्रतिक्षा कर रहा हो ।
    - योगेन्द्र जोशी (http://vichaarsankalan.wordpress.com)

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  3. Unfortunately our younger generation is not understanding the significance of environment. A big reason behind ozone depletion and global warming.

    Rakesh ji, i hope you would have tried telling this to dear kids and your wife also?

    Charity begins from home. Gradually everyone will realize.

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  4. Visit please
    संस्कृत ब्लागिंग ऽ संस्कृत E-journal
    http://www.bhaskar.com/2010/03/15/100315083757_sanskrit_college.html

    http://www.bhaskar.com/2010/03/03/100303075505_blogging.html

    sanskritam.ning.com
    jahnavisanskritejournal.com

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  5. Pehle to hamari ye Viawasta ki prakriti ko dekhne..dhundne ke liye hame ab ghumne jane ki jarurat ho gae hai..Kya pata kuch salo baad hamari khoj bhi asafal ho jae...Hame jagani hogi..phle aantrik chetna fir.. pariwarik chetna..fr samajik chetna..tbhi ham jivan ko jine layak bna paenge...Blog hamari en sabhi chetnao ko jagane mai..kamayb pratit hota hai....aabhar!!

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  6. कित्ती अच्छी जानकारी मिली यहाँ आकर....बधाई.
    ______________

    'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.

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  7. अब तो लौट आए होंगे
    जरा आंखो देख हाल बता डालिये

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