कल मैं व्यग्र था कि कल के रविवासरीय गंगा घाट सफाई कार्यक्रम की रपट कोई स्थानीय अखबार वाला छाप तो दे! दो सज्जनों को सम्पर्क किया। प्रेसविज्ञप्तियात्मक राआइट-अप बना ई-मेल किया। और अब भी अपना अनुमान लगा रहा हूं कि किसने छापा होगा!
छपास मुझमें कभी न थी। अपने लिये है भी नहीं। पर जो लोग स्वयँ-स्फूर्त सेवा का काम कर रहे हैं - और बीस-पच्चीस लोग हैं; उनका प्रिण्ट मीडिया में वर्णन उनके लिये रीवाइटलाइजर है।
अब लग रहा है कि कोई अखबार मुझे गंगाविषयक साप्ताहिक कॉलम लिखने का स्पेस दे दे तो कितना भला हो! क्या स्क्राइब बनने का यह रूट है!
आप वह राइट-अप देखें जो मैने पत्रकार मित्रों को ई-मेल किया -
अब तक इन लोगों ने लगभग डेढ़-दो टन घाट का कचरा इकठ्ठा कर डिस्पोज किया है। उसमें पॉलीथीन की पन्नियां और खण्डित मूर्तियां प्रमुख हैं। यह कचरा लगभग २५० मीटर लम्बे और १०० मीटर के आधार के त्रिभुजाकार क्षेत्र में फैला होता है। यह समूह उस कचरे को इकठ्ठा कर एक लैण्ड-फिल में समेटता है कचरा न उड़े, इसके लिये उसपर रेत की एक परत डाली जाती है।
इस रविवार को गंगा की कटान से घाट को क्षरण से रोकने के लिये तीस बोरियों में रेत भर कर जमाया गया। इससे नित्य स्नानार्थियों को सहूलियत होगी।
इस स्वत स्फूर्त समूह में दुकानदार, सरकारी कर्मी, बच्चे और महिलायें और इस घाट के पण्डा शामिल हैं।
समूह में जो नियमित लोग हैं उनमें सर्वश्री आद्याप्रसाद पाण्डेय, दिनेश पाण्डेय, पंकज सिंह, कमलेश तिवारी, भरतलाल, मनोज शुक्ल, ऋषि शर्मा, ज्ञानेन्द्र पाण्डेय, चन्द्रमा और लवकुश कनौजिया, नरेन्द्र मिश्र, हिमांशु, प्रांजल, अभ्युदय और महीप शामिल हैं।
अगले रविवार यह समूह पुन: मिलेगा, अपनी गतिविधियां जारी रखने को।
मेरी गंगा विषयक पोस्टें आप यहां देखें।
अपडेट - मेरी पत्नीजी ने बताया कि जागरण समूह के आई-नेक्स्ट ने इस विषय को कवर कर लिया है। मेरे बन्धुओं को कुछ रीवाइटल मिला होगा जरूर! कल बतायेंगे वे लोग! :-)
छपास मुझमें कभी न थी। अपने लिये है भी नहीं। पर जो लोग स्वयँ-स्फूर्त सेवा का काम कर रहे हैं - और बीस-पच्चीस लोग हैं; उनका प्रिण्ट मीडिया में वर्णन उनके लिये रीवाइटलाइजर है।
अब लग रहा है कि कोई अखबार मुझे गंगाविषयक साप्ताहिक कॉलम लिखने का स्पेस दे दे तो कितना भला हो! क्या स्क्राइब बनने का यह रूट है!
आप वह राइट-अप देखें जो मैने पत्रकार मित्रों को ई-मेल किया -
शिवकुटी में गंगाघाट की सफाई
इलाहाबाद के उत्तरीपूर्वी छोर पर शिवकुटी घाट की सफाई के लिये कुछ लोग इकठ्ठा हो कर पिछले तीन सप्ताह से प्रयास कर रहे हैं। इस समूह में लगभग २०-२५ लोग रविवार को सुबह डेढ़ घण्टे घाट की सफाई, मरम्मत और सीढियों के रखरखाव का काम करते हैं। ये लोग अपनी गतिविधियां और व्यापक करने की सोच रहे हैं। अब तक इन लोगों ने लगभग डेढ़-दो टन घाट का कचरा इकठ्ठा कर डिस्पोज किया है। उसमें पॉलीथीन की पन्नियां और खण्डित मूर्तियां प्रमुख हैं। यह कचरा लगभग २५० मीटर लम्बे और १०० मीटर के आधार के त्रिभुजाकार क्षेत्र में फैला होता है। यह समूह उस कचरे को इकठ्ठा कर एक लैण्ड-फिल में समेटता है कचरा न उड़े, इसके लिये उसपर रेत की एक परत डाली जाती है।
इस रविवार को गंगा की कटान से घाट को क्षरण से रोकने के लिये तीस बोरियों में रेत भर कर जमाया गया। इससे नित्य स्नानार्थियों को सहूलियत होगी।
इस स्वत स्फूर्त समूह में दुकानदार, सरकारी कर्मी, बच्चे और महिलायें और इस घाट के पण्डा शामिल हैं।
समूह में जो नियमित लोग हैं उनमें सर्वश्री आद्याप्रसाद पाण्डेय, दिनेश पाण्डेय, पंकज सिंह, कमलेश तिवारी, भरतलाल, मनोज शुक्ल, ऋषि शर्मा, ज्ञानेन्द्र पाण्डेय, चन्द्रमा और लवकुश कनौजिया, नरेन्द्र मिश्र, हिमांशु, प्रांजल, अभ्युदय और महीप शामिल हैं।
अगले रविवार यह समूह पुन: मिलेगा, अपनी गतिविधियां जारी रखने को।
मेरी गंगा विषयक पोस्टें आप यहां देखें।
अपडेट - मेरी पत्नीजी ने बताया कि जागरण समूह के आई-नेक्स्ट ने इस विषय को कवर कर लिया है। मेरे बन्धुओं को कुछ रीवाइटल मिला होगा जरूर! कल बतायेंगे वे लोग! :-)
अपना नाम देना भूल गए !
ReplyDeleteछपेगा जरूर।
मीडिया में वर्णन उनके लिये रीवाइटलाइजर है
ReplyDelete-बताईयेगा कि कहाँ छपा!
ऐसी रपट कहां छपती है अलबत्ता शीर्षक कुछ यूं हो कि,
ReplyDelete'गंगा सफाई अभियानियों ने बाबा पकड़ा'
'महिलाओं का गंगा किनारे जाना ठीक नहीं'
'गंगा घाट पे कूड़ा फेंका तो...'
'पन्नी उद्योग की धांधलियों का भंडाफोड़'
मतलब ये कि जब तक खबर में अपराध की खुशबू नहीं होगी..ऐसी खबर भी कोई खबर हो सकती है !
अच्छा लिखे
ReplyDeleteबढ़िया साधा आपने...
कम में खूब ...
ऐसी खबरें छपें तो सही होगा। लेख के लिए आभार।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
सब मेल है जी.. दो चार फिमेल जोडीये अभियान में.. फिर छप जाएगा अखबार में.. :) (नो ओफेंस)
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