
दो सप्ताह पूर्व पत्नी जी की तबियत अचानक ज्यादा ख़राब हो हुई और रातोंरात नागपुर इलाज़ हेतु जाना पड़ा । वहाँ जितनी बार दवाओं की ज़रूरत पड़ी हर बार अलग-अलग जगह से खरीदारी करनी पड़ी । इस खरीदारी से एक बात उभर कर सामने आई कि मेडिकल-स्टोर्स वालों ने दवाइयां कागज़ के पैकिट में रखकर दीं ।
पिछले सप्ताह जबलपुर वापस आ गया । यहाँ पर जब मेडिकल स्टोर्स से दवा खरीदी तो पोलिथीन या प्लास्टिक के बैग रखकर दीं गयीं । आज जबलपुर शहर में ऐसे बैग का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है । फ़िर चाहे आप दवाइयां खरीदें, सब्जियां खरीदें या और कुछ ।
अभी कल ऑफिस से लौटा । पत्नी जी ने स्वागत के साथ गुस्सा इस बात का दिखाया कि मैं लौटते समय सब्जी खरीदते हुए क्यों नहीं आया ? खैर मैंने कपड़े का थैला उठाते हुए कहा, 'अब जाता हूँ वरना सब्जी पोलिथीन बैग में लानी पड़ती ।' मैं पैदल रोड के किनारे सब्जी ठेलों के पास पहुँचा । रास्ते में अनेक सांध्यकालीन घूमने वाले लोग अपने दोनों हाथों कि तमाम अँगुलियों में सब्जी भरे पोलीथिन बैग टाँगे थे । लोगों की ऐसी मानसिकता पर तरस आता है। घूमने रोज़ जाते हैं लेकिन एक कपड़े की थैली साथ ले जाना गवारा नहीं !
एक ख़बर है नेशनल ज्योग्राफिक की पहल पर एक अभियान शुरू किया जा रहा है कि प्लास्टिक की थैलियों की कपड़े की थैलियों का इस्तेमाल हो, जिनका पुनः प्रयोग किया जा सकता है। अगर हम पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हैं तो क्या इस अभियान को सफलता मिलेगी ? असली सवाल यह है कि क्या हम पर्यावरण के लिए अपनी जीवन-शैली बदलेंगे ?
कुछ आठ माह पूर्व जबलपुर शहर में कचरे के ढेर पर चरने वाली तीन गायें मर गयीं । उनका पेट बुरी तरह फूल गया था । लोगों की पहल पर पथु-चिकित्सकों द्वारा इन

नॅशनल ज्योग्राफिक ग्लोबल स्कैन - ग्रीन डेस्क २००८ द्वारा विश्व भर में किए गए सर्वे के आधार पर कहा कि भारत में जीवन शैली अन्य उन्नत राष्ट्रों के मुकाबले ज्यादा दीर्घकालिक और स्थायी है । तो क्या ऐसी मानसिकता के चलते हम पर्यावरण को धोका नहीं दे रहे हैं ?
हमें चेतना होगा, एक इमानदार कोशिश करना होगी । एक कठोर कानून की आवश्यकता है, जिसमें प्लास्टिक की थैलियों के उत्पादन, उनके संग्रह और वितरण पर प्रतिबन्ध हो ।
आप सोच रहे होंगे पत्नि, प्लास्टिक, पोलिथीन पुराण ये सब क्या है ? और सुनिए - सब्जी से भरा कपड़े का थैला लेकर घर लौटा तो पत्नि जी ने कहा, 'एकाध सब्जी और ले आते, बार-बार न जाना पड़ता । ' मैनें कहा, 'थैले में जगह नहीं थी ।' 'तो क्या पन्नियाँ नहीं थी ?' पत्नि जी ने कहा ।
'थीं तो, लेकिन अदरक, धनिया की पत्ती और हरी मिर्च अपने रूमाल में बाँध लाया हूँ', मैंने दूसरे हाथ में पकड़ी रूमाल की पोटली उन्हें थमा दी । वे मुस्कुरा उठीं मानों कह रही हों - 'तुम्हारी इमानदारी को ओढें या बिछाएं ?'
इस दिशा में जागरुकता की आवश्यक्ता है. आपका प्रयास सराहनीय है.
ReplyDeleteकहने को तो दिल्ली सरकार इस पर रोक लगा चुकी है. इसके बावजूद यहां अधिकतर जगहों पर धड़ल्ले से प्लास्टिक बैग का प्रयोग हो रहा है. लोग ख़ुद मांग बैठते हैं दुकानदारों से. असल में जब तक लोगों को इसके लिए जागरूक नहीं किया जाएगा, यह विकृति समाज से जाने वाली नहीं है. और लोगों की जागरूकता नैतिक शिक्षा की किताबों से होने वाली नहीं है. इसके लिए जो लोग दूसरों को यह सब सिखाते हैं उन्हें ख़ुद अपनी बातों पर अमल करके दिखान होगा. ऐसे नहीं चल सकता कि आप तो ख़ुद ज़ेड कटेगरी की सुरक्षा लेकर घूमें और दूसरों को सादा जीवन उच्च विचार की सीख देते चलें.
ReplyDeleteजब तक हम स्वयम इस दिशा में सपर्पित नहीं होगे, कुछ नहीं होगा.
ReplyDeleteसब यदि आपकी तरह ठान ले तो क्या नही हो सकता ।
ReplyDeleteGreat... Weldone
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