प्रजाति या पर्यावरण

turtle1 लोग लुप्त या लुप्तप्राय प्रजातियों के बचाने में लगे हैं। बहुत सी मेहनत और पैसा उसमें जा रहा है। कृत्रिम वातावरण में, चिड़िया घर में रख कर, कृत्रिम गर्भाधान से या क्रास फर्टिलाइजेशन की तकनीकों से प्रजातियों के प्रतिनिधि नमूने  बचाने की जुगत हो रही है। पर आप बचा भी लेंगे कुछ को तो भी अनेक हैं जो विलुप्त होने के कगार पर हैं। कितना बचा पायेंगे? विलुप्त होने की दर कृत्रिम वातावरण बना कर बचाने की दर पर भारी पड़ेगी।

प्रकृति आपके इस तरह के कृत्रिम प्रयास को बहुत अहमियत नहीं देती। वह तो यह देखती है कि नदी में आप कितना प्लास्टिक, यूरिया, कैमीकल और प्लास्टर ऑफ पेरिस और पेण्ट झोंक रहे हैं या कितना क्लोरो-फ्लोरो-कर्बन उत्सर्जित कर वायुमण्डल को गंजा कर रहे हैं। अगर आप जरभ (जैव-भौतिकी-रसायन) के नियमों का उल्लंघन करते हैं तो वह आपको क्षमा नहीं करने जा रही। आप कितने जीनियस की पूंछ हों, अन्तत: आप एक प्रजाति के रूप में अभूतपूर्व से भूतपूर्व बनने ही जा रहे हैं। दर्पण में झांक लें।

मेरे विचार से आपके पास अगर रिसोर्स सीमित हैं और अपनी मेहनत को सही दिशा में लगाना है तो यत्न किसी कछुये या किसी डॉल्फिन की प्रजाति बचाने की बजाय पर्यावरण सुधार में लगाना चाहिये। गंगा तट पर मुझे अब भी बहुत बायो-डाइवर्सिटी (जैव-विविधता) दीखती है। आवश्यकता है पर्यावरण सुधार की जिससे यह जैव विविधता निरन्तरता में रहे।

लोग विपरीत विचार रख सकते हैं, और वे अपने तरह से काम करें। मेरे हिसाब से यह बेहतर तरीका है समस्या से जूझने का।      


Comments

  1. मेरे विचार से आपके पास अगर रिसोर्स सीमित हैं और अपनी मेहनत को सही दिशा में लगाना है तो यत्न किसी कछुये या किसी डॉल्फिन की प्रजाति बचाने की बजाय पर्यावरण सुधार में लगाना चाहिये।

    ये बात है सौ टके की. पर दोनों प्रक्रिया साथ-साथ चलानी चाहिए..पर्यावरण सुधार के कार्यक्रमों में भी गति हो और जंतु-विशेष के सरंक्षण के उपाय भी अनवरत चलने चाहिए.

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  2. आपके विचार से सहमत हूं पर्यावरण सुधार में लगाना चाहिये।

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  3. गंगा प्रदूषण और डॉल्फिन सोरक्षण पर शोध करते वक्त इसका अहसास हमें भी हुआ था।

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  4. ठीक कहा आपने कि ...प्रकृति आपके इस तरह के कृत्रिम प्रयास को बहुत अहमियत नहीं देती . जब तक एक एक जन 'हम बदलेंगे, युग बदलेगा' जैसे महामंत्र को अंतर्मन की गहराई में महसूस नहीं कर लेते.

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  5. बुनियादी बात यह है कि अगर किसी प्रजाति को आप कृत्रिम वातावरण में रखकर बचा भी लें तो उसे बचाना किस काम का? किसी जंतु की उपयोगिता तभी तक है जब तक उसे उसके प्राकृतिक वातावरण में रहने और बढ़ने दिया जाए. इसके इतर न तो प्रकृति के लिए वह उपयोगी रह जाता है, न मनुष्य के लिए और न स्वयं के लिए ही. कोशिश इस बात की होनी चाहिए कि जो बचे हैं उन्हें बचे रहने दिया जाए. उनकी जान न ली जाए.

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  6. प्रकृति के आगे सारे उपाय फेल हो जाते है
    बस उसकी इज्जत कर ली आपने तो सब कुछ मिल जाएगा ,
    उसको ठेंगे पे रखा तो उसका ठेंगा कहीं ज्यादा बड़ा है

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  7. Sarthak mudda.. kisi na kisi ko to pahal karni hi hogi.

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