व्यक्तिगत रूप से मैं प्रचारतन्त्र से दूर रहता हूं, पर गंगा सफाई के मामले में मुझे लगा कि अखबार की जरूरत है। साथ में जुड़े लोगों का राग प्रिण्ट में अपना नाम देखने का बहुत है, और वह उन्हें प्रेरित कर सकता है नियमित गंगा-स्वयंसेवक बनने में।
मुझे आग्रह करना पड़ा अखबार वाले सज्जन को। उनसे अनुरोध भी किया कि वे ब्लॉग से मसाला उठालें। पर लगता है वे कम्प्यूटर सैवी न थे।
और उन्होंने मुझसे पूछ लिया – यह सफाई का विचार कैसे आया आपको?
यह एक स्टेण्डर्ड इण्टरव्यू प्रश्न है। और जिससे पूछा गया है, वह विवरण देने में जुट जायेगा। पर मुझे बड़ा अटपटा लगा।
असल में आप अगर नदी के किनारे नियमित जाते हैं, और उसे अपनी मां का दर्जा देते हैं; तो नदी आपको सहज भाव से लेती है। आप छोटी छोटी बातें देखते हैं। वह बोलती नहीं। आपको फोटो खींचने देती है। आपको ब्लॉग पोस्टें बनाने देती है। पर आप उसी में मगन हो कर चुक नहीं जाते, या उसी में नहीं समझ लेते अपने कृतित्व की पूर्णता, तो वह धीरे धीरे महीन स्वरों में बोलने लगती है। अगर आप नियमित सुनना चाहते हैं तो वह अपना हृदय खोल देती है।यही करती हैं गंगा माई। कभी कभी शाम के अंधकार में, जब और कोई नहीं होता तो बहुत स्पष्ट स्वरों में कहती हैं। चमत्कृत कर देती हैं। ट्रांस में ला देती हैं।
मुझे लगा कि वे पत्रकार महोदय नहीं समझेंगे यह बात। और नहीं समझे भी। पर इष्टदेव सांकृत्यायन जी का यह इयत्ता-प्रकृति शायद समझे। देखा जाये!
जय गंगा माई!
जय गंगा माई!
ReplyDeleteआपका गंगा प्रेम तो अब ब्लोग जाहिर से जग जाहिर हो चुका है ..
ReplyDeleteहम समझ सकते हैं आपका गंगा अनुराग !
ReplyDeleteमुझे आपके यह विचार पढ़कर त्रिलोचन शास्त्री की प्रसिद्ध कविता "नदी कामधेनु " याद आ गई ।
ReplyDeleteinext इलाहाबाद में सफाई प्रकरण छप चुका है। बस आप 'ज्ञान' से 'ध्यान' हो गए हैं।
ReplyDeleteमेरा ख्याल है कि उन लोगों ने आप की प्रचार विमुखता भाँप ली। ;)
सरकार का अरबों रुपये का प्रोजेक्ट गंगा माई की सफ़ाई तो नहीं कर सका, ख़जाने की सफ़ाई भले कर गया हो. क्यों? क्योंकि उसमें ईमानदारी नहीं थी. यह जो आप कर रहे हैं, यह लोकप्रयास है. लोकप्रयास ईमानदार ही होता है. मुझे पूरी उम्मीद है कि यह प्रयास अपने ही जैसे कुछ और प्रयासों को जन्म देगा. ये छोटे-छोटे प्रयास ही रंग लाएंगे और एक दिन साफ-सुथरे पर्यावरण का इंतज़ाम कर देंगे.
ReplyDeleteभासा , नदी और धरती को
ReplyDeleteमाँ माना गया है | धीरमति
ही इस आवाज को सुन पते
हैं ...
धन्यवाद् ...
सच में, गंगा माई की अपार कृपा है आपपर। उनकी अविरल धारा का निर्मल चरित्र आपकी मानसिक हलचल में जा समाया है। तभी तो इतना निष्कलुश, अविछिन्न, प्रवाहमय, और पवित्र ब्लॉगलेखन आप इतनी सहजता से कर पा रहे हैं। आपकी जीवन शैली भी इन विशेषताओं से लब़रेज है। सादर!
ReplyDeleteअपनी पोस्टों के प्रिंट आउट अगले दिन लगायें। उनसे इस बारे में कापी पर लिखवायें, स्कैन करें उनको दिखायें। प्रचार के लिये अपने अंदाज में आगे आयें। सफ़ाई तो चलती रहे।
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